दलाल कथा : व्यवस्था का आधार बनती दलाल संस्कृति - ओम प्रकाश सिंह...!

दलाल कथा : व्यवस्था का आधार बनती दलाल संस्कृति - ओम प्रकाश सिंह...!



भारत ( भारत ) भारत के स्वास्थ्य क्षेत्र में दवाओं की आपूर्ति, उपकरणों की खरीद, अस्पतालों की व्यवस्थाओं और सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन तक, एक ऐसा समानांतर तंत्र वर्षों से सक्रिय है जिसने चिकित्सा को सेवा नहीं बल्कि लूट का अवसर बना दिया है। यह तंत्र उन दलालों और बिचौलियों का है जो स्वास्थ्य व्यवस्था की हर खिड़की पर अपना हिस्सा तय करके बैठे हैं। उनके लिए दवाई, जांच, इलाज या आपूर्ति—कुछ भी मानवीय नहीं है। यह केवल धन कमाने की एक मशीन है, जहाँ मरीज महज एक साधन बन जाता है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में दलालों की भूमिका सबसे खतरनाक इसलिए है क्योंकि वे उस बिंदु पर हस्तक्षेप करते हैं जहाँ आम नागरिक की असुरक्षा सबसे अधिक होती है। दवा खरीदने वाला मरीज न तो तकनीकी जानकारी रखता है और न ही सिस्टम की परतों को समझने की क्षमता। इसी कमजोरी का लाभ उठाकर दलाल आपूर्ति श्रृंखला में अपनी पकड़ मजबूत करते जाते हैं। दवा की खरीद, थोक वितरण, अस्पतालों तक पहुंच, सरकारी खरीद प्रक्रिया और यहां तक कि स्टोर-स्तर पर होने वाली कागजी कार्रवाई—हर चरण पर उनका आर्थिक प्रभाव मौजूद रहता है। नतीजा यह कि दवा की कीमत बढ़ती है, गुणवत्ता संदिग्ध होती है और कई बार जरूरतमंद लोगों तक आवश्यक दवाएं समय पर पहुंच ही नहीं पातीं।

भारत में दवाओं की सप्लाई चेन में फर्जी बिलिंग, ओवरइनवॉइसिंग, नकली कंपनियों के माध्यम से खरीद, नकली परीक्षण रिपोर्ट, और लाइसेंस प्राप्त मेडिकल स्टोर्स के नाम पर कालाबाजारी जैसे मामले बार-बार सामने आए हैं। इन सबकी जड़ में वही बिचौलिए खड़े मिलते हैं जो कंपनियों, स्टॉकिस्टों, अस्पताल प्रबंधकों, डॉक्टरों और छोटे सप्लायरों के बीच अदृश्य गठजोड़ तैयार करते हैं। वे व्यवस्था को नियमों से नहीं, संबंधों और धन-प्रवाह से चलाते हैं। उनके कारण दवाओं की वास्तविक लागत और खुदरा कीमत के बीच अंतर असामान्य रूप से बढ़ जाता है। सार्वजनिक अस्पतालों में दवाओं की कमी, निजी अस्पतालों की मनमानी कीमतें, और दवाओं व उपकरणों के टेंडर में भ्रष्टाचार—इन सबका स्रोत यही दलाल नेटवर्क है।

इसका सबसे खतरनाक पहलू यह है कि इन दलालों के लिए स्वास्थ्य क्षेत्र एक नैतिक दायित्व नहीं बल्कि धनार्जन का सीधा माध्यम है। वे दवाओं की असली जरूरत को नजरअंदाज कर केवल उस लाइन पर काम करते हैं जहाँ अधिक पैसा घूमता है। चाहे वह महंगी दवाओं का अवैध स्टॉक हो, सरकारी योजनाओं का गलत लाभ उठाना हो, या फिर बड़े अस्पतालों के साथ मिलकर कीमतों में कृत्रिम बढ़ोतरी – हर प्रक्रिया का अंतिम उद्देश्य सिर्फ एक है, अधिकतम कमाई। मरीज की जेब खाली होती है, स्वास्थ्य व्यवस्था की विश्वसनीयता कमजोर होती है और गरीब नागरिकों के लिए उपचार की उपलब्धता और भी कठिन हो जाती है।

इस दलाल संस्कृति का दूसरा गंभीर प्रभाव यह है कि यह सरकारी निगरानी प्रणाली को निष्प्रभावी कर देती है। जब निरीक्षण अधिकारी, स्थानीय सप्लायर, गोदाम प्रबंधक और लाइसेंस धारक मेडिकल स्टोर तक किसी न किसी कड़ी में इस चक्र का हिस्सा बन जाएं, तो पारदर्शिता का कोई भी नियम काम नहीं करता। परिणाम यह कि जहां गुणवत्ता आधारित दवाएं पहुंचनी चाहिए, वहां मुनाफे आधारित माल पहुंचता है। जहां जनहित के अनुसार स्टॉक निर्धारित होना चाहिए, वहां निजी लाभ के हिसाब से स्टॉक घुमाया जाता है। यह व्यवहार न केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य को खतरे में डालता है बल्कि गुणवत्ता नियंत्रण, दवा नियामक तंत्र और नैतिक चिकित्सा प्रथाओं के पूरे ढांचे को खोखला कर देता है।

स्वास्थ्य क्षेत्र में सुधार की कोई भी प्रक्रिया तब तक अधूरी है जब तक इस दलाल तंत्र की पकड़ ढीली नहीं होती। पारदर्शिता, नियमित ऑडिट, लाइसेंस की कठोर समीक्षा और आपूर्ति श्रृंखला के हर स्तर पर इलेक्ट्रॉनिक ट्रैकिंग जैसे कदम आवश्यक हैं। लेकिन उससे भी अधिक जरूरी है यह स्वीकार करना कि यह समस्या केवल कानून का उल्लंघन नहीं, बल्कि उस मानसिकता का परिणाम है जिसने स्वास्थ्य को व्यापार और मरीज को उपभोक्ता बना दिया है। चिकित्सा के मूल भाव – मानव जीवन की रक्षा – को तभी बहाल किया जा सकता है जब इस दलाल संस्कृति को जड़ से हटाने का राजनीतिक और प्रशासनिक साहस दिखाया जाए।

जब तक स्वास्थ्य व्यवस्था में दलालों का यह समानांतर तंत्र चलता रहेगा, तब तक दवा, उपचार और चिकित्सा सेवाएँ जनहित के बजाय मुनाफे के आधार पर संचालित होती रहेंगी। इसलिए अब यह केवल सुधार का प्रश्न नहीं है, बल्कि नागरिकों की सुरक्षा और भरोसे को बचाने का प्रश्न है।

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